ओड़िशा में रायगढ़ा (Rayagada) जिले के अखुसिंगी गांव (Akhusingi village) में रहने वाले 29 वर्षीय धनंजय साहू (Dhananjay Sahu) जब शादी के बाद अलग रहने लगे तो उन्होंने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत नए जॉब कार्ड के लिए आवेदन करने का फैसला किया. वह चाहते थे कि उनकी पत्नी को भी ‘निर्माण श्रमिक कल्याण योजना’ के तहत प्रदान किए गए स्वास्थ्य बीमा से लाभ मिले, जिसके लिए मनरेगा ‘जॉब कार्ड’ का उपयोग प्राथमिक पहचान उपकरण के रूप में किया जाता है.
Jump To
”मैंने मनरेगा के तहत काम करने का अधिकार खो दिया”
धनंजय साहू
ने नए कार्ड का उपयोग करके नए परिवार के लिए 100 दिनों का काम सुनिश्चित करने की भी अपनी इच्छा जाहिर की थी, किंतु पिछले दिसंबर में अखुसिंगी ग्राम पंचायत में आवेदन करने के बावजूद उन्हें कोई नया कार्ड जारी नहीं किया गया. उन्हें बहुत निराशा हुई, बाद में उन्हें पता चला कि उन्होंने अपनी मनरेगा पहचान खो दी है.
प्लंबर साहू ने 101 रिपोर्टर्स को बताया ”एक बार जब मैंने नए कार्ड के लिए आवेदन किया, तो मेरा नाम मेरे माता-पिता के जॉब कार्ड से हटा दिया गया. जब मैंने संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि वेबसाइट से हटा दिए जाने के बाद लिंक किए गए आधार नंबर के साथ नाम दोबारा दर्ज करना संभव नहीं है. एक लाइन में कहूं तो मैंने मनरेगा के तहत काम करने का अपना अधिकार खो दिया है”.
Land fencing work done by the workers (Photo – Suresh Kumar Mohapatra, 101Reporters)
दरअसल, जब परिवार के सदस्य नए कार्ड के लिए आवेदन करते हैं तो ‘जॉब कार्ड’ को मनरेगा वेबसाइट में डुप्लिकेट के रूप में चिह्नित किया जाता है और जब एक बार आधार संख्या, और खाता विवरण परिवार के जॉब कार्ड से जुड़ जाते हैं, तो वेबसाइट उस परिवार के किसी भी सदस्य को नए कार्ड तक पहुंच की अनुमति नहीं देती है.
यह सब जनवरी में ग्रामीण विकास मंत्रालय की उस घोषणा के बाद से हुआ, जिसमें मनरेगा लाभार्थियों को सभी भुगतानों के लिए आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम (ABPS) को अनिवार्य बना दिया गया है. ABPS के माध्यम से भुगतान प्राप्त करने के लिए श्रमिकों को अपने आधार नंबर को अपने जॉब कार्ड और बैंक खातों से जोड़ना चाहिए.
लगातार क्यों हटाए जा रहे MGNREGA Job Card?
पिछला निर्देश सक्रिय जॉब कार्ड धारकों को आधार से लिंक करने का था, लेकिन नये निर्देश में सभी जॉब कार्ड धारकों के आधार नंबर को लिंक करना अनिवार्य कर दिया गया है. ABPS को लागू करने की समय सीमा को पांचवीं बार – 31 अगस्त की अंतिम निर्धारित समय सीमा से बढ़ाकर 31 दिसंबर तक कर दिया गया है.
समय सीमा के अंदर काम पूरा करने के लिए, एक से अधिक डेटाबेस में पाए गए श्रमिकों के नाम बिना ज्यादा सोचे-समझे हटा दिए जा रहे हैं, इस कारण साहू जैसे लोग काम खो रहे हैं.
MNREGA workers at the work location (Photo – Suresh Kumar Mohapatra, 101Reporters)
पिछले दो वित्तीय वर्षों की तुलना में 2022-23 वित्तीय वर्ष में मनरेगा जॉब कार्डों को हटाने में 244.3% की वृद्धि के बारे में कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई और वीके श्रीकंदन द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब में, ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने जुलाई में एक लिखित उत्तर में लोकसभा को सूचित किया था. उन्होंने बताया था कि वित्तीय वर्ष 22-23 में पांच करोड़ से अधिक जॉब कार्ड हटा दिए गए हैं.
पांच करोड़ से अधिक जॉब कार्ड हटाए जाने के लिए बताए गए कारणों में नकली (गलत) जॉब कार्ड, डुप्लीकेट कार्ड, काम करने की अनिच्छा, ग्राम पंचायत से किसी परिवार का स्थायी स्थानांतरण, या ऐसे मामले जहां कार्ड में सूचीबद्ध एकमात्र व्यक्ति की मृत्यु हो गई हो, इत्यादि शामिल हैं.
22-23 में 5 करोड़ से अधिक मनरेगा जॉब कार्ड हटाए गए
उदाहरण के लिए, रायगढ़ जिले में 2021 में 2,26,151 जॉब कार्ड परिवार थे. पिछले तीन वर्षों में, 68,864 जॉब कार्ड रद्द कर दिए गए हैं, जो 30% से अधिक की विलोपन दर को दर्शाता है. इसी तरह, रायगढ़ जिले के पद्मपुर ब्लॉक में वित्तीय वर्ष 2021-22 में जॉब कार्डों की संख्या 15,515 से घटकर वर्तमान में 8,230 हो गई है.
पेरुपांगो गांव के उपेंद्र मंदांगी ने जब आधार-जॉब कार्ड-बैंक खाता लिंक करने का प्रयास किया, तो उन्हें सफल लिंकिंग का संदेश मिला. हालांकि, कुछ दिनों के बाद, उनका जॉब कार्ड नंबर वेबसाइट पर दिखाई नहीं दे रहा था. जब उन्होंने मैन्युअल काम के लिए पंजीकरण कराने का प्रयास किया, तो उनका नाम मस्टर रोल से गायब था.
उपेंद्र कहते हैं, “जब मैंने पंचायत अधिकारियों से शिकायत की तो उन्होंने मुझे वेबसाइट पर एक स्वचालित प्रक्रिया के बारे में बताया जिसके कारण समस्या हुई. उन्होंने कहा कि यह उनके नियंत्रण से बाहर है और उन्हें नहीं पता कि इसका कारण क्या है”.
Workers engaged in land development work (Photo – Suresh Kumar Mohapatra, 101Reporters)
इसी क्रम में अखुसिंगी के आनंद दंडसेना ने अपना कड़वा अनुभव साझा किया. उन्होंने कहा, “मैंने काम के लिए आवेदन किया था, लेकिन कोई अधिसूचना नहीं मिली. जब मैंने पर्यवेक्षक (मेट) से पूछा कि मस्टर रोल से मेरा नाम क्यों गायब है, तो उन्होंने बताया कि मेरा आधार नंबर वेबसाइट से स्वचालित रूप से हटा दिया गया था. कुल मिलाकर मनरेगा जॉब कार्डों को हटाने से इसका सीधा असर श्रमिकों पर पड़ा रहा है.
दरअसल, मनरेगा जॉब कार्ड सिर्फ कार्ड नहीं है. ये ग्रामीण क्षेत्रों में पहचान के प्रमुख दस्तावेज के रूप में कार्य करता है. इनका उपयोग खाते खोलते समय बैंकों और डाकघरों में अपने ग्राहक को जानें (KYC) प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए किया जाता है. वे श्रम कार्यालयों में निर्माण श्रमिकों को पंजीकृत करने के लिए प्राथमिक दस्तावेज के रूप में भी काम करते हैं, जिससे उन्हें बीमा कवरेज मिलता है.
अखुसिंगी ग्राम पंचायत के सरपंच पूर्णबासी सबर ने 101रिपोर्टर्स को बताया कि जब एक परिवार दूसरी पंचायत में स्थानांतरित हो जाता है, तो उनका डेटा आदर्श रूप से उनकी नई पंचायत में स्थानांतरित किया जाना चाहिए. इस प्रक्रिया में पुरानी पंचायत से आधार और बैंक खाता संख्या सहित जॉब कार्ड डेटा को हटाना शामिल है.
हालांकि, मनरेगा वेबसाइट नए घरेलू नामों की प्रविष्टि की अनुमति देती है, लेकिन नई पंचायत में आधार और खाता संख्या को नए जॉब कार्ड से जोड़ने का प्रयास करते समय त्रुटियां दिखाई देती हैं. इसलिए जिस नई पंचायत में लाभार्थी स्थानांतरित हुए हैं, वे नए जॉब कार्ड जारी करने में असमर्थ हैं’. एक तथ्य यह भी है कि एक बार आधार कार्ड का डेटा मनरेगा की वेबसाइट से डिलीट हो जाने के बाद ये दोबारा दर्ज नहीं हो सकता.
”मनरेगा जॉब कार्ड ग्रामीण श्रमिकों के लिए सिर्फ कार्ड नहीं”
रायगड़ा जिले में पंचायती राज विभाग के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, पहले जिला कार्यक्रम समन्वयक के लॉगिन के माध्यम से हटाए गए जॉब कार्ड धारकों के आधार और खाता संख्या को अनफ्रीज करना संभव था. हालांकि, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पिछले साल इस विकल्प को हटा दिया था.
सांधी खोला गांव के एक सामाजिक कार्यकर्ता उत्कल सबर ने कहा कि केंद्र सरकार को ग्राम पंचायतों को जॉब कार्ड और संबंधित आधार संख्या और खाता विवरण हटाने की शक्ति प्रदान करनी चाहिए. ऐसा दृष्टिकोण तब फायदेमंद साबित होगा जब लोग दूसरी पंचायत में स्थानांतरित हो जाएंगे. यह देखते हुए कि जॉब कार्ड गरीबी रेखा से नीचे के सर्वेक्षण डेटा, 2002 के आधार पर जारी किए जाते हैं, अखुसिंगी के एक युवा नेता प्रभास कुमार पाधी ने 101रिपोर्टर्स को बताया, “समय आ गया है कि हम ऐसे पुराने डेटा के आधार पर जॉब कार्ड जारी करना बंद कर दें.”
बहुपदर के सामाजिक कार्यकर्ता अनिल कुमार परिदा ने कहा कि केंद्र सरकार को आधार डेटा के आधार पर जॉब कार्ड जारी करना चाहिए, ना कि बीपीएल 2002 डेटा के आधार पर. इससे ग्रामीण रोजगार में वृद्धि हो सकती है. गुड़ियाबांधा के सामाजिक कार्यकर्ता सरोज कुमार दाश ने आरोप लगाया कि जॉब कार्ड हटाने और तकनीकी त्रुटियों के पीछे स्पष्ट मंशा जमीनी स्तर पर मनरेगा के काम में कटौती करना है.
दाश कहते हैं, “योजना के शुरुआती दिनों के दौरान, श्रम और सामग्री घटकों के बीच 60:40 का अनुपात बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया गया था. अब तकनीक और कुछ गड़बड़ियों के कारण, मनरेगा के तहत नौकरी चाहने वालों को एक दिन का भी काम सुरक्षित नहीं मिल पा रहा है.
This article was originally published on universo virtual written by Suresh Kumar Mohapatra is an Odisha-based freelance journalist and a member of 101Reporters, a pan-India network of grassroots reporters.)
(इंडिया टाइम्स हिन्दी की ऐसी और स्टोरीज़ के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, और इंस्टाग्राम पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)