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Saturday, July 6, 2024

‘मैंगो मैन’ से लेकर ‘बनाना किंग’ तक, इन किसानों ने साबित कर दिया स्मार्ट खेती कितनी लाभदायक है

किसान देश की आत्मा है. भारत में तक़रीबन दो तिहाई आबादी का जीवनयापन कृषि पर निर्भर करता है. किसान ऐसी फसलें, दालें और सब्जियां पैदा करते हैं, जिनकी सभी को जरूरत होती है. 

आधुनिक तकनीक की मदद से भारत में कई किसान साहसपूर्वक उत्पादकता बढ़ाने का जोखिम उठा रहे हैं और कृषि के नए तरीकों को भी अपना रहे हैं. वहीं आधुनिक उपकरण किसानों को न केवल बेहतर फसलें पैदा करने में मदद करते हैं, जिनका चिकित्सा और मार्केट वैल्यू अच्छी होती है. 

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उत्तर प्रदेश के मशहूर ‘मैंगो मैन’ से लेकर, जिनके 120 साल पुराने आम के पेड़ पर 300 से अधिक प्रकार के आम पैदा होते हैं, यूपी के बनाना किंग तक, जिन्होंने टिशू कल्चर का उपयोग करके प्रति वर्ष 48 लाख रुपये कमाए, भारत के 77वें गणतंत्र दिवस पर केंद्र सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया और असाधारण खेती के लिए उन्हें चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म श्री से नवाजा गया. 

1. भारत के ‘मैगों मैन’ 

India’s Mango Man
India’s Mango Man

82 वर्षीय कलीम उल्लाह खान अपने 120 साल पुराने आम के पेड़ को देखने के लिए हर दिन एक मील से अधिक पैदल चलकर जाते हैं, जिसे उन्होंने वर्षों से पसंदीदा फल की 300 से अधिक किस्मों का उत्पादन करने के लिए तैयार किया है. उन्हें भारत का मैंगो मैन कहा जाता है.  

उनका कहना है 1987 से उनका गौरव और आनंद 120 साल पुराना उनका पेड़ रहा है, जो 300 से अधिक विभिन्न प्रकार के आमों का सोर्स है और प्रत्येक का अपना स्वाद, बनावट, रंग और आकार होता है. कलीम ने लखनऊ के पास छोटे से शहर मलीहाबाद में अपने बगीचे को लेकर कहा, “दशकों तक चिलचिलाती धूप में कड़ी मेहनत करने का यह मेरा पुरस्कार है.”

2. 121 किस्मों के आम 

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यूपी के सहारनपुर में एक आम के पेड़ पर 121 प्रकार के आम उगते हैं. 15 साल पुराना यह पेड़ जिले में काफी लोकप्रिय है. वहीं सहारनपुर पहले से ही आमों के लिए देशभर में प्रसिद्ध है. यह पेड़ जिले के कंपनी बाग इलाके में है. यह अनोखा पेड़ एक प्रयोग का हिस्सा था जिसे बागवानों ने पांच साल पहले आम की नई किस्में विकसित करने और उनके स्वाद के साथ प्रयोग करने के उद्देश्य से शुरू किया था.

आम के एक ही पेड़ पर 121 प्रकार के आम की कलम लगाने वाले शख़्स थे औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र के तत्कालीन संयुक्त निदेशक राजेश प्रसाद. इस पेड़ पर लगने वाले आमों की कुछ मुख्य प्रजातियां हैं दशहरी, लंगड़ा, चौसा, रामकेला, आम्रपाली, सहारनपुर अरुण, सहारनपुर वरुण, सहारनपुर सौरभ, सहारनपुर गौरव, सहारनपुर राजीव, लखनऊ सफेदा, टॉमी ऐट किंग्स, पूसा सूर्या, सैंसेशन, रटौल, कलमी मालदा, बांबे, स्मिथ, मैंगीफेरा जालोनिया, गोला बुलंदशहर, लरन्कू, एलआर स्पेशल, आलमपुर बेनिशा, असौजिया देवबंद आदि. इस शोध के सफल होने के बाद अब आम की नई किस्मों पर भी शोध चल रहा है. 

3. दुनिया का सबसे महंगा आम

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2021 में, मध्य प्रदेश में एक जोड़े ने अपनी सबसे बेशकीमती संपत्ति ‘मियाज़ाकी’ आम के पेड़, जिन पर दुनिया के सबसे महंगे आम लगते हैं, की सुरक्षा के लिए चार सुरक्षा गार्ड और छह निगरानी कुत्तों को काम पर रखा था. जब सालों पहले दोनों पौधे लगाए गए थे, तो रानी और संकल्प परिहार नाम के जोड़े को इस बात का अंदाजा नहीं था कि पेड़ पर रूबी रंग के जापानी आम लगेंगे. 

विदेशी फल के बारे में बात फैलने के बाद स्थानीय चोर एक बार उनके बगीचों में घुस गए और फल पौधे चुराने की कोशिश की थी. जिसके बाद इस दुर्लभ फल की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी. इस बेशकीमती आम की कीमत 2.7 लाख रुपये प्रति किलोग्राम थी. इस जोड़े ने वर्तमान में सात आमों की खेती की है, जो भारत में बहुत कम उगाए जाते हैं. 

4. अनिल बालनजा

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एडवांस तकनीक का उपयोग करके भारत में कई किसान अब ड्रैगन फ्रूट और मैंगोस्टीन जैसे फल उगाते हैं. वास्तव में, ऐसे फलों की खेती वर्षों पहले कुछ उत्साही किसानों द्वारा एक शौक के रूप में शुरू की गई थी. कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के बेलथांगडी तालुक के एक युवा किसान अनिल बालनजा ऐसे ही जुनूनी किसानों में से एक हैं. उनके लिए विदेशी फल उगाना एक सतत अनुसंधान और विकास गतिविधि है. 

एक नई रिपोर्ट के अनुसार, बलांजा ने पिछले दो दशकों में 30 एकड़ जमीन पर 40 देशों के 700 से अधिक किस्मों के फलों के पौधे लगाए. यहां की जलवायु परिस्थितियों के कारण उन सभी की पैदावार नहीं हुई. हालाँकि, वह लगाए गए पौधों में से लगभग 40 प्रतिशत में फल उगाने में कामयाब रहे, जिससे उन्हें तगड़ा मुनाफा भी कमाया.

5. अमरप्रीत सिंह हीरा

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पंजाब में बिल्डर से किसान बना एक शख्स स्वास्थ्य लाभ और बेहतर कमाई के लिए काला गेहूं उगा रहा है, जो यहां स्थित राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (NABI) द्वारा विकसित खाद्यान्न की एक किस्म है.

अमरप्रीत सिंह हीरा, जो पेशे से एक बिल्डर हैं, लेकिन उन्हें खेती का शौक है, रोपड़ जिले के सैफलपुर गांव में अपने खेत में काला गेहूं उगा रहे हैं. अमरप्रीत के मुताबिक काले गेहूं की किस्म की बाजार में काफी मांग है.  

6. डॉ प्रभाकर राव

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डॉ. प्रभाकर राव और उनका परिवार बेंगलुरु में 2.5 एकड़ का प्राकृतिक फार्म चलाते हैं, जिसमें वे ऐसी सब्जियां उगाते हैं जो भारत की मूल निवासी हैं और फिर भी देश में कहीं भी उगाई या पाई नहीं जाती हैं.

प्लांट ब्रीडिंग और जेनेटिक्स में पीएचडी करने वाले डॉ प्रभाकर राव ने अपना करियर वास्तु कला में बनाया पर एक लंबी यात्रा के दौरान उन्होंने किसानों की सबसे पुरानी पीढ़ी से लुप्त हो चुके वनस्पति प्रजातियों की 650 देसी बीज एकत्र कर उन पर प्रयोग किया.  

7. वल्लभभाई वसरामभाई मारवानिया

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गुजरात के जूनागढ़ के वल्लभभाई वासरामभाई मारवानिया गाजर को गुजरातियों के स्वाद से परिचित कराने वाले पहले व्यक्ति थे क्योंकि 1943 तक, स्थानीय लोग गाजर को खाने के लिए उपयुक्त नहीं मानते थे.

तब वल्लभभाई 13 वर्ष के थे. उन्होंने पांचवीं कक्षा छोड़ दी और अपने पांच एकड़ के खेत में अपने पिता की मदद करना शुरू कर दिया, जहां दालें, अनाज और मूंगफली उगाई जाती थीं, जबकि मक्का, ज्वार, राजको (अल्फाल्फा) और गाजर की खेती मवेशियों के चारे के रूप में की जाती थी. दो बोरी गाजर से उन्हें 8 रुपये की कमाई हुई, जो उस समय एक बड़ी रकम थी. हैरान और खुश होकर उनके पिता ने उनका समर्थन करने का फैसला किया और उन्होंने गाजर की खेती शुरू कर दी.

8. जगदीश प्रसाद पारिख

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जगदीश प्रसाद पारिख भले ही कभी स्कूल नहीं गए, लेकिन राजस्थान के अजीतगढ़ गांव के ये पद्मश्री से सम्मानित किसान हैं. जगदीश प्रसाद पारिख ने अपने खेत में जैविक तकनीकों के माध्यम से दुनिया की सबसे बड़ी फूलगोभी में से एक – अजीतगढ़ किस्म – 25.5 किलोग्राम वजन वाली फूलगोभी का उत्पादन करने के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया. अब उनका रिकॉर्ड टूट गया. पारंपरिक तरीकों के माध्यम से उनके कृषि एक्सपर्ट्स द्वारा उन्हें खूब प्रशंसा मिली.

9. रामसरन वर्मा

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राम सरन वर्मा लखनऊ से 30 किमी दूर उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के दौलतपुर गांव में पले-बढ़े. 1988 में, वह केले की खेती के लिए टिशू कल्चर शुरू करने वाले राज्य के पहले किसानों में से एक बने. 1 एकड़ के बागान में 400 क्विंटल केले पैदा हुए. 1 लाख रुपये की उत्पादन लागत के लिए, किसान ने 4 लाख रुपये से अधिक का मुनाफा कमाया! उन्होंने लाल केले भी उगाए, जो नियमित किस्म के 15 रुपये प्रति किलोग्राम के मुकाबले 80-100 रुपये प्रति किलोग्राम पर बेचे गए.  

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